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या ते॑ रुद्र शि॒वा त॒नूरघो॒राऽपा॑पकाशिनी। तया॑ नस्त॒न्वा᳕ शन्त॑मया॒ गिरि॑शन्ता॒भि चा॑कशीहि ॥२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। ते॒। रु॒द्र॒। शि॒वा। त॒नूः। अघो॑रा। अपा॑पकाशि॒नीत्यपा॑पऽकाशिनी। तया॑। नः॒। त॒न्वा᳕। शन्त॑म॒येति॒ शम्ऽत॑मया। गिरि॑श॒न्तेति॒ गिरि॑ऽशन्त। अ॒भि। चा॒क॒शी॒हि॒ ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:2


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब शिक्षक और शिष्य का व्यवहार अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (गिरिशन्त) मेघ वा सत्य उपदेश से सुख पहुँचाने वाले (रुद्र) दुष्टों को भय और श्रेष्ठों के लिये सुखकारी शिक्षक विद्वन् ! (या) जो (ते) आप की (अघोरा) घोर उपद्रव से रहित (अपापकाशिनी) सत्य धर्मों को प्रकाशित करने हारी (शिवा) कल्याणकारिणी (तनूः) देह वा विस्तृत उपदेश रूप नीति है (तया) उस (शन्तमया) अत्यन्त सुख प्राप्त करानेवाली (तन्वा) देह वा विस्तृत उपदेश की नीति से (नः) हम लोगों को आप (अभि, चाकशीहि) सब ओर से शीघ्र शिक्षा कीजिये ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - शिक्षक लोग शिष्यों के लिये धर्मयुक्त नीति की शिक्षा दें और पापों से पृथक् करके कल्याणरूपी कर्मों के आचरण में नियुक्त करें ॥२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ शिक्षकशिष्यव्यवहारमाह ॥

अन्वय:

(या) (ते) तव (रुद्र) दुष्टानां भयङ्कर श्रेष्ठानां सुखकर (शिवा) कल्याणकारिणी (तनूः) शरीरं विस्तृतोपदेशनीतिर्वा (अघोरा) अविद्यमानो घोर उपद्रवो यया सा (अपापकाशिनी) अपापान् सत्यधर्मान् काशितुं शीलमस्याः सा (तया) (नः) अस्मान् (तन्वा) विस्तृतया (शन्तमया) अतिशयेन सुखप्रापिकया (गिरिशन्त) यो गिरिणा मेघेन सत्योपदेशेन वा शं सुखं तनोति तत्सम्बुद्धौ। गिरिरिति मेघनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१०) (अभि) सर्वतः (चाकशीहि) भृशं कक्ष्व पुनः पुनः शाधि। अयं कशधातोर्यङ्लुगन्तः प्रयोगः। वा छन्दसि (अष्टा०३.४.८८) इति पित्त्वादीट् ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गिरिशन्त रुद्र ! या ते तवाघोराऽपापकाशिनी शिवा तनूरस्ति, तया शन्तमया तन्वा नस्त्वमभिचाकशीहि ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - शिक्षकाः शिष्येभ्यः धर्म्यां नीतिं शिक्षित्वा निष्पापान् कल्याणाचरणान् सम्पादयन्तु ॥२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गुरुजनांनी शिष्यांना धर्मयुक्त नीतीचे शिक्षण द्यावे व पापांपासून दूर करून चांगले आचरण करण्यास उद्युक्त करावे.